All About Alternative Investment Funds
An Alternative Investment Fund (AIF) is a privately pooled investment vehicle that can take the form of a company, a trust, body corporate or a Limited Liability Partnership. In India, AIFs are defined under the Regulation 2(1)(b) of Securities Exchange Board of India (Alternative Investment Fund) Regulations 2012 and are not regulated by any regulators like IRDA, PFRDA or RBI.
Features of AIFs:
Except for Angel Funds, a minimum of Rs1cr per investor is required as an investment and a minimum of 1,000 sophisticated investors are required.
In Angel Fund AIFs, minimum 49 investors are required with an investment of Rs25 lakh each.
The members in an AIF are not legally allowed to invite people at large to subscribe to the fund.
Benefits of AIFs
Portfolio Diversification
Option to invest in non-traditional asset classes
Opportunity to invest in a particular strategy
Access to wider investment horizon
Taxation: Category I and II: Investor level
Taxation: Category III: Fund level
Categories of AIF
Alternative Investment Funds are broadly divided into three categories:
Category
The Category I funds invest in either/or:
Start-ups
SMEs (Small or medium enterprises)
Social Ventures
Infrastructure
Any other socially or economically desirable sector
These funds are not allowed to engage in any leverage except for meeting funding requirements up to 30 days, on not more than 4 times in a financial year with a corpus less than 10%. The tenure of these funds can be between 3 to 10 years. Some examples of funds, which come
under this category are Venture Capital Funds (Angel Funds), SME Funds, Social Venture Funds, Infrastructure Funds. Under the Category I AIF, the fund drawdown happens after every 4-5 years.
Category II
The AIFs that do not fall under Category I and Category III fall under this category. For category
II AIFs, no specific incentives or concession is given by the government or any other regulator.
The funds are prohibited from raising debt other than to meet day to day operational
requirements. The tenure for funds of this category can be between 3 to 10 years. Examples of
AIFs belonging to Category II are Real Estate Funds, Private Equity Funds and Funds for
Distressed Assets. The fund drawdown happens in 4-5 years.
Category II
AIFs of Category III make use of diverse or complex trading strategies. This category is
primarily for Hedge Funds and can employ leverage through an investment in listed/unlisted
derivatives. The funds in this category are traded to make short-term returns with no concession
or incentive provided by the government or regulator. The tenure for these funds is minimum 3
years.
Eligibility Criteria
Investors can be Indian, NRI or foreign nationals.
Minimum corpus should be Rs20cr for each scheme and Rs10cr for Angel Funds.
Minimum investment by each investor should be Rs1cr or Rs25 lakh (in case of employees/director/fund manager of AIF).
Maximum number of investors in each scheme can be 1,000, but 49 in case of Angel Funds.
Category I & II AIF can be close-ended only. With minimum 3 years, Category III can be either open or close-ended.
The sponsor shall have a continuing interest in the respective AIF, of not less than 2.5% of the corpus (AIF I & II) and 5% of corpus in AIF III or Rs5cr (for each scheme), whichever is lower.
Recent News related to Alternative Investment Funds
AIF registered in India with SEBI have increased to 366 from 92 in 2015-16.
Total investment record jumped to Rs43,500cr from Rs11,250cr in September 2015.
The landscape of Indian investors is changing fast with a huge spike in wealthy investors and family office.
Buoyancy in listed stocks and unlisted space are providing impetus to the AIF industry.
Buoyancy in listed stocks and unlisted space are providing impetus to the AIF industry.
While investing in AIFs, do understand that you will have to bear risks like Market Risk and Liquidity Risks.
वैकल्पिक निवेश फंड (ए. आई. एफ.) के बारे में सभी जानकारी
वैकल्पिक निवेश फंड (ए. आई. एफ.) निजी तौर पर एक निवेश का माध्यम है जो कि कंपनी, ट्रस्ट, कॉर्पोरेट बॉडी या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप की तरह स्थापित किया जा सकता है। भारत में (ए. आई. एफ.) को सेबी (ए. आई. एफ.) की धारा 2 (1 )(बी), अधिनियम 2012 के अंतर्गत परिभाषित किया गया है और आई. आर. डी. ए., पी. एफ. आर. डी. ए. और आर. बी. आई. जैसी संस्था के द्वारा नियंत्रित नहीं होती है।
ए. आई. एफ. की विशेषताएँ
एंजेल फंड्स को छोड़कर , बाकी सभी निवेशों में एक निवेशक को कम से कम १ करोड़ रुपये निवेश करना होता है और कम से कम 1000 समझदार निवेशकों की जरूरत होती है।
एंजेल फंड्स (ए. आई. एफ.) में कम से कम 49 निवेशकों की जरुरत होती है जिसमे हर निवेशक को 25 लाख रुपये निवेश करना होता है।
ए. आई. एफ. के सदस्यो को फंड्स की हिस्सेदारी में और लोगो को शामिल करने की इजाज़त नहीं होती है।
ए. आई. एफ. के फायदे :
पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन
नॉन-ट्रेडिशनल एसेट क्लासेज में निवेश का विकल्प
निवेश के सभी पहलुओं तक पहुँच
टैक्सेशन : केटेगरी 1 और 2 : निवेश के स्तर पर
टैक्सेशन : केटेगरी 3 : फण्ड के स्तर पर
ए. आई. एफ. की कैटेगरियाँ :
ए. आई. एफ. को नीचे दी गई तीन कैटेगरियो में बाँटा जा सकता है।
केटेगरी 1
फंड्स का निवेश नीचे दिए किसी भी क्षेत्र में किया जा सकता है
्टार्ट अप्स
एस. एम. ई. (छोटे या माध्यम कारोबार)
सामाजिक उद्योग
इंफ्रास्ट्रक्चर
अन्य किसी सामाजिक या मनचाहे आर्थिक क्षेत्र में
30 दिन तक की फंडिंग की ज़रूरतों या फिर 10% के कोष के साथ साल में 4 बार से ज़्यादा में इन फंड्स का किसी लिवरेज में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है।इन फंड्स की समय अवधि 3 से 10 साल तक हो सकती है। वेंचर कैपिटल फंड्स (एंजेल फंड्स), एस. एम. ई. फंड्स, सोशल वेंचर फंड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर फंड्स इस केटेगरी में आने वाले कुछ फंड्स के उदाहरण है। ए. आई. एफ. की इस केटेगरी में हर 4-5 साल में फण्ड निकलने के कारण फंड्स में गिरावट आती है।
केटेगरी 2
ए. आई. एफ. जो केटेगरी 1 औऱ 3 में नहीं लिए जाते वह इस केटेगरी में शामिल किये जाते है। ए. आई. एफ.
केटेगरी 2 के लिए सरकार या प्रशासन द्वारा कोई भी विशेष प्रोत्साहन या छूट नहीं दी जाती है। इन फंड्स की
समय अवधि 3 से 10 साल तक हो सकती है। रियल एस्टेट फंड्स, प्राइवेट इक्विटी फंड्स, पुरानी सम्पत्तियो
के लिए फंड्स, इस केटेगरी में आने वाले कुछ फंड्स के उदहारण है। ए. आई. एफ. की इस केटेगरी में हर 4-5
साल में फण्ड निकलने के कारण फंड्स में गिरावट आती है।
केटेगरी 3
ए. आई. एफ. की केटेगरी 3 अलग-अलग और जटिल व्यापारिक योजनाओ के लिए मानी जाती है। यह
केटेगरी प्राथमिक तौर पर फंड्स को हेज करने और लिस्टेड/अनलिस्टेड डेरिवेटिव्स में निवेश करके मुनाफा
कमाने के लिए होती है। इस केटेगरी में ट्रेडिंग शार्ट-टर्म रिटर्न पाने की जाती है जिसमे सरकार या प्रशासन
द्वारा कोई भी विशेष प्रोत्साहन या छूट नहीं दी जाती है। इन फंड्स की समय अवधि कम से कम 3 साल की
होती है।
निवेश के लिए योग्यता :
निवेशक भारतीय, एन. आर. आई., विदेशी कोई भी हो सकता है।
हर योजना के लिए राशि कम से कम 20 करोड़ रुपये और एंजेल फंड्स के लिए 10 करोड़ रुपये होती है।
हर एक निवेशक को कम से कम 1 करोड़ रुपये या 25 लाख रूपये ( यदि वह कर्मचारी/ डायरेक्टर/फण्ड मैनेजर है तो )
किसी भी योजना में निवेश करने के लिए निवेशकों की संख्या अधिकतम 1000 तक हो सकती है लेकिन एंजेल फंड्स में यह संख्या 49 तक हो सकती है।
ए. आई. एफ. की कैटेगरी 1 और 2 क्लोज- एंडेड होती है जबकि ए. आई. एफ. की केटेगरी 3 कम से कम साल के लिए ओपन या क्लोज- एंडेड हो सकती है।
ए. आई. एफ. की कैटेगरी 1 और 2 के लिए स्पॉन्सर की हिस्सेदारी कुल राशि के 2.5% से कम नही होनी चाहिए और केटेगरी 3 के लिए हिस्सेदारी कुल राशि का 5% या 5 करोड़ रुपये ( किसी भी योजना के लिए) दोनो में से जो भी कम हो , होनी चाहिए।
ए. आई. एफ. के संबंध में नई जानकारी
2015-16 में, भारत में सेबी में रजिस्टर्ड ए. आई. एफ. की संख्या बढ़कर 92 से 366 हो गई है।
सितंबर 2015 में कुल निवेश रिकॉर्ड 11250 करोड़ रुपये से बढ़कर 43,500 करोड़ रुपये हो गया है।
अच्छे निवेशको के बढ़ने की वजह से भारतीय निवेशकों नजरिया भी तेजी से बदल रहा है।
लिस्टेड/ अनलिस्टेड स्टॉक्स में उछाल आने के कारण ए. आई. एफ. इंडस्ट्री को प्रोत्साहन मिल रहा है।
ए. आई. एफ. इंडस्ट्रीज की ग्रोथ का मुख्य कारण उसका नियंत्रित ढांचा है। सूत्रों के अनुसार ए. आई. एफ. इंडस्ट्रीज का दायरा आने वाले 2-3 सालों में दुगुना होने वाला है।
ए. आई. एफ. में निवेश करते समय मार्किट में होने वाले उतार-चढ़ाव का ध्यान रखना चाहिए।
ओल्टरनेटीव इन्वेस्टमेंट फंड विषयी माहिती
ओल्टरनेटीव इन्वेस्टमेंट फंड (AIF) हा एक प्रायवेट एकत्रित केलेले इन्वेस्टमेंट वेहिकल आहे, कि जो कंपनी, ट्रस्ट किंवा लिमिटेड लायेबिलीटी पार्टनरशिपच्या फोर्म मध्ये होऊ शकतो. भारतामध्ये, AIF सिक्योरीटीझ एक्स्चेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (ओल्टरनेटीव इन्वेस्टमेंट फंड) रेग्युलेशन २०१२ च्या रेग्युलेशन 2(1)(b) द्वारा नियमित आहे आणि IRDA, PFRDA किंवा RBI द्वारा नियमित नाही.
AIF चे फीचर्स:
एंजल फंडशिवाय्च्या फंडासाठी प्रत्येक इन्वेस्टर कडून कमीत कमी १ कोट रुपयांचे इन्वेस्टमेंट आवश्यक आहे, आणि कमीत कमी १,००० सोफेस्टीकेटेड इन्वेस्टर असणे आवश्यक आहे.
एंजल फंड AIF मध्ये कमीत कमी ४९ इन्वेस्टर्स असणे आवश्यक आहे, आणि प्रत्येकाने २५ लाख रुपयांचे इन्वेस्टमेंट करणे गरजेचे आहे.
AIFचे मेम्बर्स दुसर्या लोकांना फंडला सब्स्क्राइब करण्यासाठी मोठ्या पायावर कायदेशीर पद्धतीने आमंत्रण देऊ शकत नाही.
AIF चे फायदे:
पोर्टफोलियो डाईवर्सीफीकेशन
पारंपारिक एसेट क्लास शिवायच्या एसेट क्लास मध्ये इन्वेस्ट करण्याची संधी मिळते
एक विशिष्ट स्ट्रेटेजी बनवून त्याप्रमाणे इन्वेस्ट करण्याची संधी
एका नव्या आणि खूप विशाळ इन्वेस्टमेंट एवेन्यु मध्ये प्रवेश करण्याची संधी
टेक्सेशन : केटेगरी १ आणि २ – इन्वेस्टर लेवल
टेक्सेशन : केटेगरी ३ – फंड लेवल
AIF चे प्रकार:
ओल्टरनेटीव इन्वेस्टमेंट फंड सामान्यपणे ३ केटेगरी मध्ये विभाजित आहे:
केटेगरी १
केटेगरी १ चे AIF फंड्स खालील कोणत्याहि ओप्शंस मध्ये इन्वेस्ट करतात;
स्टार्ट अप्स
SMEs (स्मोल एंड मिडीयम एन्टरप्राईस)
सोशियल वेन्चर्स
इन्फ्रास्ट्रक्चर
किंवा दुसर्या कोणत्याही सोशीयली कि इकोनोमिकली चांगले वाटणारे सेक्टर्स
हे फंड्स ३० दिवसापर्यंताच्या फंडिंगच्या गरजेला पूर्ण करण्या शिवायच्या दुसर्या कोणत्याही कारणाने कोणत्याही प्रकारच्या लेवरेज ठेवू शकत नाही. ते पण संपूर्ण फाय्नान्शियल यर मध्ये फक्त ४ वेळा आणि कोर्पसच्या फक्त १० टक्क्यापर्यंतच. ह्या प्रकारच्या फंडाचे टेन्योर ३ ते १० वर्षा पर्यंत असू शकते. ह्या केटेगरी मध्ये येणारे काही फंड्स खालील प्रमाणे आहेत; वेंचर केपिटल फंड्स (एंजल फंड्स), SME फंड्स, सोशियल वेंचर फंड्स आणि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड्स. AIF ची केटेगरी १ च्या फंडाचे, दर ४ – ५ वर्षांनी ड्रो- डाऊन होतो.
केटेगरी 2
ज्या AIF चा समावेश केटेगरी १ किंवा ३ मध्ये होत नाही ते फंड्स ह्या केटेगरी मध्ये येतात. केटेगरी
२ च्या फंडांना सरकार किंवा दुसर्या कोणत्याही रेग्युलेटर द्वारा कोणत्याही प्रकारच्या इंसेन्टीव किंवा
कन्सेशन देण्यात येत नाहीत. रोज रोजच्या खर्चांना पूर्ण करण्याशिवायच्या कोणत्याही कारणाने हे
फंड्स डेट रेईझ करू शकत नाही. ह्या केटेगरीच्या फंडाचे टेन्योर ३ ते १० वर्ष असू शकते. ह्या
केटेगरी मध्ये येणारे काही फंड्स खालील प्रमाणे आहेत; रियल इस्टेट फंड्स, प्रायवेट इक्विटी फंड्स,
आणि डीस्ट्रेस्ड एसेट फंड्स. AIF केटेगरी २ च्या फंडाचे, दर ४ – ५ वर्षांनी ड्रो- डाऊन होतो.
केटेगरी 3
AIF केटेगरी ३ चे फंड्स डाइवर्स किंवा कॉम्प्लेक्स ट्रेडिंग स्ट्रेटेजीचा उपयोग करतात. ह्या केटेगरी
मध्ये प्रामुख्याने हेज फंडांचा समावेश केला जातो, आणि लिस्टेड किंवा अनलिस्टेड डेरीवेटीव्झ मध्ये
इन्वेस्ट करण्याद्वारा लेवरेज घेतात. ह्या केटेगरीचे फंड्स शोर्ट टर्म रिटर्न्स मिळविण्यासाठी ट्रेड
करण्यात येतात. आणि ह्या केटेगरीच्या फंडांना सरकार किंवा दुसर्या कोणत्याही रेग्युलेटर द्वारा
कोणत्याही प्रकारच्या इंसेन्टीव किंवा कन्सेशन देण्यात येत नाहीत. ह्या फंडांचे टेन्योर मिनिमम ३
वर्षांचे असते.
एलीजीबीलिटी क्राईटेरिया
भारतीय, NRI किंवा परदेशी नागरिक ह्या फंडाचे इन्वेस्टर होऊ शकतात.
प्रत्येक स्कीम साठी मिनिमम कोर्पस २० कोटी रुपये असणे जरुरी आहे, आणि एंजल फंडान्साठी १० कोटी रुपयांचे कोर्पस असणे गरजेचे असते.
प्रत्येक इंवेस्टरचे मिनिमम इन्वेस्टमेंट १ कोटी रुपये असणे गरजेचे आहे, (फंडाचे इम्प्लोयीझ, डायरेक्टर आणि फंड मेनेजर २५ लाख रुपये पण इन्वेस्ट करू शकतात.)
प्रत्येक स्कीममध्ये जास्तीत जास्त १,००० इन्वेस्टर असू शकतात, पण एंजल फंडामध्ये जास्तीत जास्त ४९ इन्वेस्टर्स असतात.
केटेगरी १ आणि २ चे AIF फंड्स क्लोझ एन्डेड असतात, पण केटेगरी ३ चे फंड्स मिनिमम ३ वर्षाच्या टेन्योर बरोबर ओपन आणि क्लोज एन्डेड पण असू शकते.
AIF फंडात कोर्पसच्या २.५% ने जास्त (AIF केटेगरी १ आणि २), आणि AIF केटेगरी ३ मध्ये कोर्पसच्या ५% किंवा ५ कोट रुपये (प्रत्येक स्कीम करिता) जे पण जास्त असेल एवढा फंडाच्या स्पोन्सरचा सलग इंटरेस्ट असावा.
ओल्टरनेटीव इन्वेस्टमेंट फंडा विषयी ताजा बातम्या:
भारतामध्ये SEBI कडे रजिस्टर्ड AIF, २०१५- १६ मध्ये ९२ पासून पासून वाढून ३६६ झाले आहेत.
सप्टेंबर २०१५ मध्ये टोटल इन्वेस्टमेंट ११,२५० कोटीने वाढून ४३,५०० कोटी पर्यंत पोचले.
श्रीमंत इन्वेस्टरांची संख्या सतत वाढत आहे आणी वाढत्या फेमिली ऑफिस ह्या दोन कारणांमुळे भारतीय इन्वेस्टमेंटचा नकाशा वेगाने बदलत आहे.
लिस्टेड स्टोक्स आणि अनलिस्टेड स्टोक्स मध्ये वाढणाऱ्या इंटरेस्टच्या कारणाने पण AIF इंडस्ट्रीला प्रोत्साहन मिळते.
रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क थोडे रीलेक्स झाल्याकारणाने पण AIF इंडस्ट्रीमध्ये वाढ आली आहे. सध्याच्या एका अहवालाप्रमाणे, AIF इंडस्ट्री येणाऱ्या २-३ वर्षांमध्ये आतापेक्षा दुप्पट होईल.
*AIF मध्ये इन्वेस्ट करतांना लक्ष्यात ठेवावे कि तुम्हाला मार्केट रिस्क आणि लिक्विडीटी रिस्क घेण्यासाठी तयार राहावे लागेल.
ઓલ્ટરનેટીવ ઇન્વેસ્ટમેંટ ફંડ્સ વિષે સંપૂર્ણ માહિતી
ઓલ્ટરનેટીવ ઇન્વેસ્ટમેંટ ફંડ (AIF) એક પ્રાઈવેટલી ભેગું કરેલું ઇન્વેસ્ટમેંટ વેહિકલ છે જે કંપની, ટ્રસ્ટ અથવા લીમીટેડ લાયાબીલીટી પાર્ટનરશીપ હોય શકે છે. ભારતમાં AIF, સિક્યોરીટીઝ એક્સચેન્જ બોર્ડ ઓફ ઇન્ડિયા (ઓલ્ટરનેટીવ ઇન્વેસ્ટમેંટ ફંડ) રેગ્યુલેશન ૨૦૧૨ ના રેગ્યુલેશન 2(1)(b) દ્વારા નિયમિત થાય છે અને IRDA, PFRDA અથવા RBI દ્વારા નિયમિત નથી.
AIF ના ફીચર્સ
એન્જલ ફંડ્સ સિવાય ના ફંડ્સ માટે, દરેક ઇન્વેસ્ટર તરફથી ઓછામાં ઓછા ૧ કરોડ રૂપિયાનું ઇન્વેસ્ટમેંટ હોવું જરૂરી છે; અને ઓછામાં ઓછા ૧,૦૦૦ સોફેસ્ટીકેટેડ ઇન્વેસ્ટર્સ હોવા જરૂરી છે.
એન્જલ ફંડ AIFમાં, ઓછામાં ઓછા ૪૯ ઇન્વેસ્ટર્સ હોવા જરૂરી છે અને દરેક ઇન્વેસ્ટરે ઓછામાં ઓછા 25 લાખ રૂપિયાનું ઇન્વેસ્ટમેંટ કરવું પડે છે.
AIF ના મેમ્બર્સ બીજા લોકોને ફંડને સબસ્ક્રાઈબ કરવા માટે પાયે આમંત્રણ આપી શકતા નથી. તેવું કરવું ગેરકાયદેસર છે.
AIFના ફાયદાઓ :
પોર્ટફોલીઓ ડાઈવર્સિફીકેશન
જૂની એસેટ ક્લાસ સિવાયના અન્ય એસેટ ક્લાસમાં ઇન્વેસ્ટ કરવાની તક
એક પર્ટીક્યુલર સ્ટ્રેટેજી બનાવીને તે પ્રમાણે ઇન્વેસ્ટ કરવાની તક
એક નવા અને ખુબ જ વિશાળ ઇન્વેસ્ટમેંટ એવેન્યુમાં પ્રવેશ કરવાની તક
ેક્સેશન: કૅટૅગરિ ૧ અને ૨ – ઇન્વેસ્ટર લેવલ
ટેક્સેશન : કૅટૅગરિ ૩ – ફંડ લેવલ
AIFના ક્લાસ
ઓલ્ટરનેટીવ ઇન્વેસ્ટમેંટ ફંડસ 3 કૅટૅગરિ માં વિભાજીત છે :
કૅટૅગરિ ૧
કૅટૅગરિ ૧ ના AIF ફંડ્સ નીચેમાંથી કોઈ પણ ઓપ્શન્સમાં ઇન્વેસ્ટ કરે છે:
સ્ટાર્ટપ્સ
SMEs (સ્મોલ અથવા મીડીયમ એન્ટરપ્રાઈઝ)
સોશિયલ વૅન્ચર સ
ઈન્ફ્રાસ્ટ્રક્ચર
અથવા બીજા કોઈ પણ સોશિયલી કે ઇકોનોમિકલી સારા લાગતા સેક્ટર્સ
આ ફંડ્સ ૩૦ દિવસ સુધીની ફન્ડિંગની જરૂરીયાતને પહોંચી વળવા સિવાયના બીજા કોઈ પણ કારણસર લૅવરૅજ લઇ નથી શકતા, તે પણ આખા ફાઈનાન્શિયલ વર્ષમાં ફક્ત 4 વાર અને કોર્પસ ના ફક્ત ૧૦% સુધી જ. આ પ્રકારના ફંડનું ટેન્યોર ૩ થી ૧૦ વર્ષ નું હોય છે. આ કૅટૅગરિ માં આવતા અમુક ફંડ્સ છે: વૅન્ચર કેપિટલ ફંડ્સ (એન્જલ ફંડ્સ), SME ફંડ્સ, સોશિયલ વૅન્ચર ફંડ્સ અને ઈન્ફ્રાસ્ટ્રક્ચર ફંડ્સ. AIFની કૅટૅગરિ ૧ ના ફંડ્સ નું દર 4–5 વર્ષે ડ્રો – ડાઉન થાય છે.
કૅટૅગરિ ૨
जજે AIFનો કૅટૅગરિ ૧ અને કૅટૅગરિ ૩ માં સમાવેશ નથી થતો, તે ફંડ્સ આ કૅટૅગરિ માં આવે છે. કૅટૅગરિ ૨ ના ફંડ્સને સરકાર
અથવા બીજા કોઈ પણ રેગ્યુલેટર દ્વારા કોઈ પણ પ્રકારના ઇન્સેન્ટીવ અથવા કન્સેશન આપવામાં આવતા નથી. રોજના
ખર્ચાઓને પહોંચી વળવા સિવાયના કોઈ પણ કારણથી આ ફંડ્સ ડેટ (ઉધાર) રેઈઝ કરી નથી શકતા. આ કૅટૅગરિના ફંડ્સનું
ટેન્યોર ૩-૧૦ વર્ષ નું હોઈ શકે છે. આમાં આવતા અમુક ફંડ્સ છે: રીયલ ઍસ્ટેટ ફંડ્સ, પ્રાઈવેટ ઇક્વિટી ફંડ્સ, અને ડિસ્ટ્રેસ્ડ
ઍસૅટ ફંડ્સ. AIFની કૅટૅગરિ ૨ ના ફંડ્સ નું દર ૪ – ૫ વર્ષે ડ્રો – ડાઉન થાય છે.
કૅટૅગરિ ૩
AIF કૅટૅગરિ ૩ ના ફંડ્સ ડાઈવર્સ અને કોમ્પ્લેક્સ ટ્રેડીંગ સ્ટ્રૅૂટેજીઝનો ઉપયોગ કરે છે. આ કૅટૅગરિ માં મુખ્યતાએ હેજ ફંડ્સ હોય
છે, અને લિસ્ટેડ અથવા અનલિસ્ટેડ ડૅરીવેટીવ્ઝમાં ઇન્વૅસ્ટ કરવા દ્વારા આ ફંડ્સ લૅવરૅજ લે છે. આ કૅટૅગરિ ના ફંડ્સ શૉર્ટ ટર્મ
રિટર્ન્સ મેળવવા માટે ટ્રેડ કરવામાં આવે છે. અને આ કૅટૅગરિ ના ફંડ્સને સરકાર અથવા બીજા કોઈ પણ રેગ્યુલેટર દ્વારા કોઈ પણ
પ્રકારના ઇન્સેન્ટીવ અથવા કન્સેશન આપવામાં નથી આવતા. આ ફંડ્સનું ટેન્યોર મિનિમમ ૩ વર્ષ હોય છે.
એલિજીબિલિટિ ક્રાઈટેરિયા
ભારતીય, NRI અથવા વિદેશી નાગરીકો આ ફંડ્સના ઇન્વેસ્ટર બની શકે છે
દરેક સ્કીમ માટેનું મિનિમમ કૉર્પસ 20 કરોડ રૂપિયા હોવું જોઈએ, અને એન્જલ ફંડ માટે ૧૦ કરોડ રૂપિયાનું કૉર્પસ હોવું જોઈએ
દરેક ઇન્વેસ્ટરનું મિનિમમ ઇન્વેસ્ટમેંટ 1 કરોડ રૂપિયા હોવું જોઈએ, (ફંડના એમ્પ્લોયી, ડાયરેક્ટર અને ફંડ મૅનેજર 25 લાખ રૂપિયા પણ ઇન્વેસ્ટ કરી શકે છે)
દરેક સ્કીમમાં વધુમાં વધુ 1,000 ઇન્વેસ્ટર હોઈ શકે છે, પણ એન્જલ ફંડ્સ માં વધુમાં વધુ ૪૯ ઇન્વેસ્ટર હોય છે
કૅટૅગરિ 1 અને 2 ના AIF ફંડ્સ ક્લોઝ એન્ડેડ જ હોય છે. જો કે કૅટૅગરિ 3 ના ફંડ્સ, મિનિમમ ૩ વર્ષના ટેન્યોર સાથે ઓપન એન્ડેડ અથવા ક્લોઝ એન્ડેડ પણ હોઈ શકે છે.
AIF ફંડમાં કૉર્પસ ના 2.5% થી વધારે (AIF કૅટૅગરિ 1 અને 2), અને AIF 3 માં કૉર્પસના 5% અથવા 5 કરોડ રૂપિયા (દરેક સ્કીમ માટે), જે વધુ હોય તે એટલો ફંડના સ્પૉન્સરનો સતત ઇન્ટરેસ્ટ હોવો જોઈએ.
ઓલ્ટરનેટીવ ઇન્વેસ્ટમેંટ ફંડને લગતા સમાચાર:
ભારતમાં SEBI રજીસ્ટર્ડ AIFની સંખ્યા 2015-16માં 92 થી વધીને આજે 366 થઇ ગયી છે.
સપ્ટેમ્બર 2015 માં ટોટલ ઇન્વેસ્ટમેંટ 11,250 કરોડ રૂપિયાથી વધીને 43,500 કરોડ પહોંચ્યું.
શ્રીમંત ઇન્વેસ્ટર્સ સતત વધવાના કારણે અને મોટી થથી ફેમીલી ઑફિસ ને કારણે ભારતીય ઇન્વેસ્ટમેંટ નો નકશો ઝડપથી બદલાઈ રહ્યો છે.
લિસ્ટેડ સ્ટૉક્સ અને અનલિસ્ટેડ સ્ટૉક્સ માં વધતા ઇન્ટરેસ્ટને કારણે AIF ઇન્ડસ્ટ્રી ને પ્રોત્સાહન મળે છે.
રૅગ્યુલેટરી ફ્રેમવર્ક થોડું રીલેક્સ થવાના કારણે પણ AIF ઇન્ડસ્ટ્રી માં વધારો આવ્યો છે. હમણાના તારણ મુજબ, AIF ઇન્ડસ્ટ્રી આવનારા ૨ થી ૩ વર્ષમાં અત્યાર કરતા બમણી થઇ જશે.
*AIFમાં ઇન્વેસ્ટ કરતી વખતે ધ્યાન રહે કે તમારે માર્કેટ રિસ્ક અને લિક્વીડિટિ રિસ્ક લેવા તૈયાર રહેવું પડશે.