Understanding Commodity and Currency Trading
Commodity trading:
Commodities, whether they are related to energy, metals or agri, are an essential part of everyday life. They also form an important component of running a business. For instance, a hotelier would be affected by a decline or rise in agri prices.
Commodities are also used to diversify a portfolio against market risk. In volatile or bearish stock markets, investors transfer money to precious metals such as gold and silver that have been historically viewed as precious metals. Commodities can also be used as a hedge against high inflation or during periods of currency devaluation.
Today, tradeable commodities fall into four categories. These are:
Bullions (gold and silver)
Metals (copper, lead, zinc, nickel, aluminium)
Energy (crude oil, heating oil, natural gas and gasoline)
Agricultural (guarseed, soybeans, jeera, cotton and sugar)
Commodity market:
Derivatives such as Future & Option are traded on the commodities exchange. Future contract is an agreement between the buyer and the seller to buy or sell a particular asset of specific quantity and at a predetermined price at a specific date in future.
The underlying asset in a future contract could be a commodity, stocks, currencies, or bonds. It helps to transfer the prices risk from hedgers to speculators.
Benefits of trading in commodity market:
Commodities market is mainly driven by demand and supply. It is easy to understand and easy to trade. Margin requirements to trade the future contract is very low i.e. 5-8%. Trading hours are longer in commodity market; it starts from 10 am and is open till 11.30 pm, and extended till 11.50 pm, in accordance with the daylight saving timings schedule.
Further, trading in the commodity market is beneficial as it is difficult to manipulate prices in a commodities contract as it is derived from global markets.
Commodity exchanges in India:
Multi-Commodity Exchange of India Limited (MCX), National Multi-Commodity & Derivatives Exchange of India Limited (NCDEX)
Currency trading:
Currency trading is defined as the buying and selling of international currencies. In general,banks and financial trading institutions are engaged in currency trading. However, individual investors can also participate and make capital gains from variations in the exchange rate of the currencies.
Currencies are frequently traded in the forex market globally are as follows:
Euro/US dollars (EUR/USD)
US dollar/Japanese yen (USD/JPY)
British pound/dollar (GBP/USD)
US dollar/Swiss franc (USD/CHF)
Australian doller/US dollar (AUD/USD)
US dollar/Canadian dollar (USD/CAD)
Benefits of currency trading:
Portfolio diversification
Hedging (specially for importers/exporters)
Low margin-high leverage
Limited scripts to track
Serves as a separate asset class for market savvy investors, arbitrageurs and speculators
Far from manipulation
Currency derivatives:
In terms of market share, currency market is internationally very mature and bigger than equity and commodity markets. Currency derivatives are a contract between the seller and buyer, whose value is to be derived from the underlying asset i.e. the currency value. A derivative based on currency exchange rate is an agreement that two currencies can be exchanged in a specific quantity of a particular currency pair at a future date.
Indian currency markets have noticed heightened activities and extreme volatilities in last couple of years. The developments taking place in the Indian forex market have brightened the prospects for investors and traders.
Currency derivatives can be Future and Options contracts, which are similar to the stock Futures and Options, but the underlying asset happens to be a currency pair (i.e. USDINR, EURINR, JPYINR OR GBPINR) instead of stocks. Currency derivatives are available on four currency pairs viz. US Dollars (USD), Euro (EUR), Great Britain Pound (GBP) and Japanese Yen (JPY). Currency options are currently available on US Dollars.
Participants in commodity and currency market:
Hedgers: They try to reduce the risk associated with uncertainty. Hedgers involve taking an offsetting position in a derivative in order to balance any gains and losses to the underlying assets.
Speculators: They are typically seen as risk takers and they love volatility. They bet against or with the movements of the market to try make profit from the fluctuation in the price of the underlying assets.
Factors affecting different commodities and currency trading:
There are a number of factors that affects commodities and currency trading. Besides geopolitical issues, factors such as US economic data ((nonfarm payroll data), Federal Reserve interest rate, GDP data, new home sales/pending home sales, crude oil/Natural gas inventories data and oil rig count data impact commodities and the currency market. Chinese economic data such as GDP, export and import also affects the market.
कमोडिटी और करेंसी ट्रेडिंग को समझें
कमोडिटी और करेंसी ट्रेडिंग को समझें
कमोडिटी ट्रेडिंग चाहे वो खेती से जुडी हो या ऊर्जा या मैटल, कमोडिटी हमारे रोज़ के जीवन की ज़रूरी चीज़ है | बिज़नस को चलाने के लिए भी ये ज़रूरी होती है | जैसे की एक होटल के मालिक को खेती से जुडी कमोडिटी की कीमत के गिरने या बढ़ने से फर्क पड़ेगा |
कोमोडिटी पोर्टफोलियो को फ़ैलाकर मार्किट रिस्क को कम करती है| मंदी या बदलते हुए स्टॉक मार्किट में व्यापारी पैसे को सोना , चांदी जैसी कीमती मैटल में बदल लेते हैं | कमोडिटीज़ का उपयोग हाई इन्फ्लेशन या करेंसी डीवेलुएशन की अवधि के दौरान बचाव के रूप में भी किया जा सकता है।
आज ट्रेड के योग्य कमोडिटीज को चार केटेगरी में बांटा गया है | ये हैं -
बुल्लिओंस (सोना और चांदी )
धातु (तांबा, कॉपर ), सीसा(लीड ), जस्ता (जिंक ), निकल, एल्यूमीनियम
ऊर्जा (कच्चा तेल , गरम तेल (heating oil) , नेचुरल गैस और गैसोलीन
खेती से जुड़े (ज्वार- बाजरा, सोयाबीन, जीरा, कपास और चीनी
कमोडिटी मार्किट
भविष्य और विकल्प(आप्शन) जैसे डेरीवेटिव का कारोबार कमोडिटीज एक्सचेंज पर होता है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदार और बेचने वाले के बीच एक अग्रीमेंट होता है , किसी एक एसेट की स्पेसिफिक मात्रा को पहले से तय कीमत पर पहले से तय तारीख़ पर बेचने का | फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में लिए जाने वाले एसेट कोमोडिटी, स्टॉक्स , कर्रेंसी या बांड्स हो सकते हैं | यह हेजर्स से सट्टेबाजों तक कीमतों के जोखिम को ट्रान्सफर करने में मदद करता है।
कमोडिटी मार्किट में व्यापर करने के फायदे:
कमोडिटी मार्किट ज़्यादातर डिमांड और सप्लाई पर चलता है | इसे समझना और व्यापार करना आसान है | फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करने में मार्जिन की ज़रूरत बहुत कम होती है जैसे 5-8% | कमोडिटी मार्किट में ट्रेडिंग का समय लम्बा होता है ये शुरू होता है सुबह दस बजे जो खुलता है रात को 11.30 pm तक और 11.50 pm तक चल सकता है, डेलाइट सेविंग टाइमिंग शेडयूल के अनुसार |
साथ ही , कमोडिटी मार्किट में ट्रेड करना फायदेमंद होता है क्यूंकि कमोडिटीज कॉन्ट्रैक्ट ग्लोबल मार्किट से मिलता है इसलिए इसमें कीमतों की हेरा- फेरी करना बहुत मुश्किल होता है|
भारत में कमोडिटी एक्सचेंज
भारत में कमोडिटी एक्सचेंज कराने का काम ये दो संस्थानों का होता है
मल्टी-कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड(MCX),
नेशनल मल्टी-कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड(NCDEX)
करेंसी ट्रेडिंग:
करेंसी ट्रेडिंग का मतलब होता है इंटरनेशनल करेंसी को खरीदना और बेचना | आमतौर पर बैंक और फाइनेंसियल ट्रेडिंग इंस्टिट्यूट करेंसी ट्रेडिंग का काम करते हैं | हांलाकि , इंडिविजुअल इन्वेस्टर अपने खुद के हिसाब से भी इसमें भाग ले सकते है और कैपिटल गेन कर सकते हैं। वो कैपिटल गेन का फायदा कर्रेंसी की एक्सचेंज रेट के वेरिएशन से उठा सकते हैं|
करेंसी मार्किट
बैंक, कमर्शियल कम्पनीज , सेंट्रल बैंक्स, इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट फर्म्स, हेज फंड्स, रिटेल फोरेक्स और इन्वेस्टरस इंटरनेशनल ये सब मिलकर करेंसी मार्किट बनाते हैं |
ज़्यादातर फोरेक्स मार्किट में ट्रेड की जाने वाली करेंसी
यूरो /US डॉलर्स (EUR/USD)
US डॉलर /जापानी येन (USD/JPY)
ब्रिटिश पौंड /डॉलर (GBP/USD)
US डॉलर / स्विस फ्रैंक (USD/CHF)
ऑस्ट्रेलियाई डॉलर /US डॉलर (AUD/USD)
US डॉलर /कैनेडियन डॉलर (USD/CAD)
करेंसी ट्रेडिंग के फायदे
पोर्टफोलियो में विविधता
हेजिंग (ख़ास इम्पोर्टर्स / एक्सपोर्टर्स के लिए )
लो मार्जिन-हाई लेवरेज
ट्रैक करने के लिए सीमित स्क्रिप्ट्स
हेरा फेरी से दूर
करेंसी डेरिवेटिव्स :
मार्किट शेयर की बात करें तो इक्विटी और कमोडिटी मार्किट के मुकाबले करेंसी मार्किट इंटरनेशनली बहुत बड़ा और मैच्योर है | करेंसी डेरिवेटिव्स बेचने वाले और खरीददार के बीच का एक कॉन्ट्रैक्ट होता है , जिसकी वैल्यू अंडरलाइंग एसेट से निकाली जाती है जो करेंसी वैल्यू पर आधारित होती है|
करेंसी एक्सचेंज रेट पर बेस्ड डेरीवेटिव एक ऐसा अग्रीमेंट ये कहता है की पहले से तय हुई तारीख़ पर कोई भी दो करेंसी किसी भी मात्रा में एक्सचेंज करी जा सकती है। भारतीय करेंसी मार्किट में कुछ समय से काफी हलचल देखी गयी है और पिछले कुछ सालों में काफी नए बदलाव भी देखे गए हैं| भारतीय फोरेक्स मार्किट के विकास ने इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के लिए काफी नए मौके बना दिए हैं |.
करेंसी डेरिवेटिव्स फ्यूचर और आप्शनस वाले भी हो सकते हैं , जो की स्टॉक मार्किट के फ्यूचर और आप्शनस जैसे ही होते हैं, लेकिन इसमें आने वाले एसेट्स स्टॉक्स की जगह करेंसी के जोड़े जैसे होते हैं (जैसे USDINR, EURINR, JPYINR और GBPINR) | करेंसी डेरिवेटिव्स चार करेंसी के कॉम्बिनेशन में मिलते हैं जो हैं US डॉलर्स (USD), यूरो (EUR), ग्रेट ब्रिटेन पौंड (GBP) और जापानी येन (JPY) अभी के लिए करेंसी आप्शनस US डॉलर्स पर हैं |
करेंसी मार्किट और कमोडिटी के भागीदार :
हेजेर्स : ये अनसर्टेनिटी से जुडी रिस्क को कम करने की कोशिश करता है | हेजेर्स एक ऑफ सेटिंग पोजीशन लेते हैं डेरीवेटिव में ताकि अंडरलाइंग असेस्ट्स के फायदे और नुकसान का बैलेंस बना रहे |
सट्टेबाज़ : इन लोगों को रिस्क के साथ बिज़नेस करनेवाले माना जाता है, इन्हें अक्सर मार्किट में अनिश्चितता पसंद है | ये मार्किट की खिलाफ जाकर शर्त लगाते हैं और ये अंडरलाइंग एसेट की प्राइस की फ्लक्चुएशन से प्रॉफिट बनाते हैं|
कमोडिटीज और करेंसी ट्रेडिंग को इफ़ेक्ट करने वाले फैक्टर्स
कई कारण हैं जो कमोडिटी और करेंसी ट्रेडिंग को इफ़ेक्ट करते हैं | जिओ पोलिटिकल कारण: जैसे की US इकनोमिक डाटा (नॉन फार्म पेरोल डाटा ), फ़ेडरल रिज़र्व interest रेट , GDP डाटा , नए होम सेल्स/ रुके हुए होम सेल्स , कच्चा तेल /नेचुरल गैस इन्वेंटरीस डाटा और आयल रिग काउंट डाटा कमोडिटी और करेंसी मार्किट को इफ़ेक्ट करता है| चीनी इकनोमिक डाटा जैसे की GDP, एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट भी मार्किट को अफ़ेक्ट करता है | इन कारणों से अक्सर मार्किट में बढ़ोतरी और गिरावट देखी गयी है।
कॉमोडिटी आणि करंसी ट्रेडिंग विषयी माहिती
कॉमोडिटी ट्रेडिंग:
कोणत्याही प्रकारची कॉमोडिटी रोजरोजच्या लाईफ मध्ये जरुरी असते; मग ती एनर्जी, मेटल किंवा एग्रीकल्चरने जोडलेली असेल. कॉमोडिटी धंधा चालविण्यासाठी पण खूप उपयोगी आहेत. उदा: हॉटेलच्या माल्काल्या शेतीच्या उत्पादना मध्ये वाढणार्या भावाने खूप फरक पडू शकतो.
मार्केट रीस्कने वाचवण्यासाठी पण पोर्टफोलिओला कॉमोडिटी मध्ये डायव्हर्सिफाइ करण्यात येउ शकते. जेव्हा मार्केट खूप वोलेटाईल असेल किंवा मंदी असेल तेव्हा इंवेस्टर्स स्वताःचे फाईनान्स सोना चांदी सारख्या महाग कॉमोडिटी मध्ये शिफ्ट करतात कारण हा कॉमोडिटीज नेहमी महाग राहत आली आहे. करन्सीचे डीवेल्युएशन झाले असेल तेव्हा किंव्हा हाई इन्फ्लेशन बरोबर हेज करण्यासाठी पण कॉमोडिटीचा उपयोग करण्यात येतो.
आज ट्रेड के योग्य कमोडिटीज को चार केटेगरी में बांटा गया है | ये हैं -
आजच्या काळात ट्रेडेबल कॉमोडिटीज चार केटेगरी मध्ये विभाजित करू शकतो:
बबुलियन( गोल्ड आणि सिल्वर )पेट्रोल डीझेल )
एग्रीकल्चरल ( गवारच्या बी, सोयाबीन, जीर, कॉटन आणि साखर )
मेटल्स ( कॉपर, लेड, झिंक, निकल, एल्युमिनियम )
एनरजी ( कृड ओईल, हिटिंग ओईल , नेचरल गेस आणि
कॉमोडिटी मार्केट :
कॉमोडीटी एक्षचेंजवर फ्युचर एंड ऑप्शन्स सारख्या डेरीवेटीव्स ट्रेड होत असतात. फ्युचर कोंट्रेक्ट हा दोन पार्टी मध्ये काही नक्की झालेल्या तारीखी, नक्की झालेल्या भावाने, नक्की झालेली क्वोन्टीटी प्रमाणे घेण्या किंवा देण्यासाठीचा कोंट्रेक्ट आहे.
फ्युचर कोंट्रेक्ट मध्ये एसेट म्हणून कॉमोडीटी, स्टोक्स, करन्सी किंवा बोंड पण असू शकतो. प्राईस रिस्क हेजर कडून स्पेक्युलेटर्स कडे ट्रान्स्फर करण्यामध्ये हा कोंट्रेक्ट उपयोगी होत असतो.
कॉमोडिटी मार्केट वर ट्रेड करण्याचे फायदे :
कॉमोडिटीचे मार्केट डिमांड आणि सप्लायने चालत असते. हे मार्केट समजण्यासाठी आणि ट्रेड करण्यासाठी खूप सोपे आहे. फ्युचर कोंट्रेक्टमध्ये ट्रेड करण्यासाठी मार्जिन रीक्वायरमेंट फक्त ५ - ८ टक्के आहे. कॉमोडिटी मार्केटमध्ये ट्रेडिंग अवर्स जास्त लांब असतात. सकाळी १० वाजल्यापासून घेऊन रात्री ११:३० पर्यंत चालू असते, आणि डे-लाईट सेविंगच्या टाईमिंग शिड्युल प्रमाणे कधी कधी ११:५० पर्यंत एक्स्टेंड करण्यात येते. कॉमोडिटी मार्केटमध्ये ट्रेड करण्याचा आणखी एक फायदा हा आहे, कि कॉमोडिटी मार्केटमध्ये भावाबरोबर मेनिप्यूलेशन करणे अवगड आहे. कारण कॉमोडिटीचे भाव ग्लोबल मार्केटमध्ये नक्की करण्यात येतो.
भारतामध्ये चालणारे कॉमोडिटी एक्स्चेंज :
मल्टी कॉमोडिटी एक्स्चेंज इंडिया लिमिटेड (MCX)
नेशनल मल्टी कॉमोडिटी एन्ड डेरीवेटीव्स एक्स्चेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCDEX)
करन्सी ट्रेडिंग :
करन्सी ट्रेडिंग म्हणजे इंटरनेशनल करन्सीची खरेदी-विक्री करावी. बेन्का आणि फाईनान्शियल इंस्टीट्युट्स करन्सी ट्रेडिंग मध्ये एकटीव असतात. तरी पण लहान गुंतवणूकदार पण करन्सीच्या एक्सचेंज रेट मध्ये येणाऱ्या डिफरन्समधून स्वतःच्या फायदा करण्यासाठी करन्सी ट्रेडिंग करू शकतात.
करन्सी मार्केट:
इंटरनेशनल करन्सी मार्केट बेन्क्स, कमर्शियल कंपन्या, सेन्ट्रल बेन्क्स, इन्वेस्टमेंट मेनेजमेंट फंड्स, हेज फंड्स, रीटेइल फोरेक्स आणि इन्वेस्टरांनी बनलेले असते.
ग्लोबली फोरेक्स मार्केट मध्ये जास्त ट्रेड होणारी करन्सी
युरो / US डॉलर (EUR / USD)
US डॉलर / जापनीज येन (USD / JPY)
ब्रिटिश पौंड /डॉलर (GBP/USD)
US डॉलर / स्विस फ्रैंक (USD/CHF)
करन्सी ट्रेडिंगचे फायदे
पोर्टफोलियो डाइवर्सीफीकेशन
हेजिंग (खास इम्पोर्टर आणि एक्सपोर्टर साठी)
लों मार्जिन – हाई लेवरेज
लिमिटेड स्क्रिप्ट्सला ट्रेक करावे लागते
मार्केट विषयी विशेष जाणणारे अशे इन्वेस्टर, आर्बीट्राजर्स आणि स्पेक्युलेटर्स साठी करन्सी हि एक वेगळी एसेट क्लास होऊन जाते
मेनिप्युलेशन होण्याची शक्यता खूप कमी
करन्सी डेरीवेटीव्झ
मार्केट शेरच्या दृष्टीने पाहिले तर करन्सी मार्केट इंटरनेशनली इक्विटी मार्केट पेक्षा खूप मेच्योर आणि मोठे आहे. करन्सी डेरीवेटीव हा बायर आणि सेलर मधला अशा कोंट्रेक्ट आहे ज्याचे मूल्य एक किंवा जास्त ह्याच्याबरोबर जोडलेल्या एसेट वर आधारित आहे. म्हणजे कि करन्सी वेल्यू वर आधारित असते. करन्सी एक्सचेंज रेटवर आधारित डेरीवेटीव एग्रीमेंट म्हणजे, भविष्यात काही करन्सी पेर (उदा. EUR / USD)ची काही क्वोंटीटी दुसर्या करन्सी बरोबर एक्सचेंज होऊ शकते असा करार.
शेवटच्या काही वर्षात इंडियन करन्सी मार्केट मध्ये एकटीविटी खूप वाढली आहे. आणि त्याबरोबरच मार्केट पण खूप वोलेटाईल राहिले आहे. इंडियन फोरेक्स मार्केट मध्ये जे डेवलपमेंट होत आहेत त्यामुळे इन्वेस्टर्स आणि ट्रेडर्स साठी खूप उज्ज्वल चान्सीस आहेत.
करन्सी डेरीवेटीव्झ मध्ये फ्युचर आणि ओप्शंस कोंट्रेक्ट होऊ शकतात, जे स्टोकच्या फ्युचर आणि ओप्शंस कोंट्रेक्ट सारखेच असतात. पण ह्यामध्ये एसेट म्हणून स्टोकच्या जागेवर करन्सी पेर (USD / INR, EUR / INR, JPY / INR, GBP / INR) असतात. करन्सी डेरीवेटीव्झ ४ करन्सी पेर्स मध्ये अवेलेबल आहे, US डॉलर (USD), युरो (EUR), ग्रेट ब्रिटन पाउंड (GBP),जापनीज येन (JPY). करन्सी ओप्शंस कोंट्रेक्ट फक्त डॉलर मध्येच अवेलेबल आहे.
कॉमोडिटी आणि करन्सी मार्केटचे पार्टीसिपंट
हेजर : हेजर्स अनिश्चिततेमुळे उभा होणार्या रीस्कला कमी करण्याची ट्राय करतात. एसेट मध्ये होणार्या लोस आणि नफ्याला बेलंस करण्यासाठी हेजर्स डेरीवेटीव्झ मध्ये ऑफसेटिंग पोझिशन घेत असतात.
स्पेक्युलेटर्स : स्पेक्युलेटर्स रिस्क घेणारे असतात, आणि त्यांना वोलेटीलिटी पसंद असते. ते एसेट भावात होणार्या वाढी आणि घाटात फायदा मिळवण्यासाठी मार्केटच्या मुव्हमेंट बरोबर किंवा त्याच्या विरुद्ध सौदा करतात.
करन्सी आणि वेग वेगळ्या कॉमोडिटीच्या ट्रेडिंगला असार करणारे फेक्टर्स
कॉमोडिटी आणि करन्सी ट्रेडिंगला असार करणारे खूप फेक्टर्स आहेत. जिओ – पोलिटिकल इश्युज तर खरेच, पण त्याचाबरोबर US इकोनोमिक डेटा (नोन – फार्म पे रोल डेटा) फेडरल रिझर्व इंटरेस्ट रेट, GDP डेटा, नव्या घरांची विक्री, बाकी राहिलेल्या घरांची विक्री, क्रूड ओईल,नेचरल गेसचा स्टोक ओईल रिग काऊन्ट डेटा पण कॉमोडिटी आणि करन्सी मार्केटला असर करतात. चाइनाचा GDP वगेरे इकोनोमिक डेटा, एक्स्पोर्ट आणि इम्पोर्ट पण मार्केट वर असार करत असतात.
કૉમોડિટી અને કરન્સી ટ્રેડીંગ સમજો
કૉમોડિટી ટ્રેડીંગ
કોઈ પણ પ્રકારની કૉમોડિટી રોજબરોજ ની જીંદગીમાં ખુબ જરૂરી હોય છે. પછી એ ભલે એનર્જી, મેટલ કે પછી એગ્રિકલ્ચરથી જોડાયેલી હોય. એ કૉમોડિટી ધંધો ચલાવવામાં પણ ખુબ ઉપયોગી હોય છે. દાખલા તરીકે હોટલના માલિકને એગ્રિકલ્ચર પેદાશોના વધતા ભાવોથી ખુબ ફરક પડી શકે છે.
માર્કેટ રિસ્ક થી બચાવવા માટે પણ પોર્ટફોલીઓને કૉમોડિટી માં ડાઈવર્સીફાઈ કરવામાં આવી શકે છે. જ્યારે માર્કેટ ખુબ વોલેટાઈલ હોય અથવા મંદીનું હોય ત્યારે ઇન્વેસ્ટર પોતાનું ફાઈનાન્સ સોના – ચાંદી જેવી કિંમતી કૉમોડિટીમાં શિફ્ટ કરે છે, કારણકે આ કૉમોડિટીઝ કાયમથી કિંમતી રહેતી આવી છે. કરન્સી નું ડીવેલ્યુએશન થયું હોય ત્યારે અથવા વધુ ઇન્ફલેશન ની સામે હૅજ કરવા માટે પણ કૉમોડિટીઝનો ઉપયોગ કરવામાં આવે છે.
આજના સમયમાં ટ્રેડેબલ કૉમોડિટીઝ ૪ કેટેગરીમાં વિભાજીત કરી શકાય :
બુલિયન (સોનુ અને ચાંદી)
મેટલ્સ (કોપર, લેડ, ઝીંક, નીકલ, એલ્યુમિનિયમ)
એનર્જી (ક્રુડ ઓઈલ, હિટીંગ ઓઈલ, નેચરલ ગેસ અને પેટ્રોલ - ડીઝલ)
એગ્રિકલ્ચરલ (ગુવારના દાણા, સોયાબીન, જીરું, રૂં અને સાકર)
કૉમોડિટી માર્કેટ :
કૉમોડિટી એક્સચેન્જ ઉપર ફ્યુચર એન્ડ ઓપ્શન્સ જેવા ડેરીવેટીવ્ઝ ટ્રેડ થાય છે. ફ્યુચર કોંટ્રાક્ટ એ બે પાર્ટી વચ્ચે નક્કી થયેલી તારીખે, નક્કી થયેલા ભાવે, નક્કી થયેલ ક્વોન્ટીટી મુજબ કોઈક એસેટ લેવા અથવા વેચવા માટેનો કોંટ્રાક્ટ છે.
ફ્યુચર કોંટ્રાક્ટ માં એસેટ તરીકે કૉમોડિટી, સ્ટોક, કરન્સી, અથવા બોન્ડ હોઈ શકે છે. પ્રાઈસ રિસ્ક હૅજર પાસેથી સ્પેકયુલેટર પાસે ટ્રાન્સફર કરવામાં ફ્યુચર કોંટ્રાક્ટ ઉપયોગી થાય છે.
કૉમોડિટી માર્કેટમાં ટ્રેડ કરવાના ફાયદા :
કૉમોડિટીઝ નું માર્કેટ મોટા ભાગે ડિમાંડ અને સપ્લાય થી ચાલતું હોય છે. આ માર્કેટ સમજવા માટે અને ટ્રેડ કરવા માટે ખુબ સહેલું છે. ફ્યુચર કોંટ્રાક્ટમાં ટ્રેડ કરવા માટે માર્જીન રીક્વાયરમેંટ માત્ર ૫ – ૮ % જ છે. કૉમોડિટી માર્કેટ માં ટ્રેડીંગ ટાઇમ વધારે લાંબો હોય છે, સવારે ૧૦ વાગ્યાથી લઈને રાતે ૧૧:૩૦ સુધી ચાલુ હોય છે. અને ડે- લાઈટ સેવિંગ ના ટાઈમિંગ શીડ્યુલ પ્રમાણે ક્યારેક ૧૧:૫૦ સુધી પણ એક્સટેન્ડ કરવામાં આવે છે.
કૉમોડિટી માર્કેટમાં ટ્રેડ કરવાનો હજી એક ફાયદો એ છે કે કૉમોડિટી કોંટ્રાક્ટમાં ભાવ સાથે છેડ છાડ કરવી મુશ્કેલ છે, કારણકે ભાવ ગ્લોબલ માર્કેટ પ્રમાણે નક્કી થાય છે.
ભારતમાં ચાલતા કૉમોડિટી એક્સચેન્જ:
મલ્ટી કૉમોડિટી એક્સચેન્જ ઓફ ઇન્ડિયા લીમીટેડ (MCX)
નેશનલ મલ્ટી કૉમોડિટી એન્ડ ડેરીવેટીવ્ઝ એક્સચેન્જ ઓફ ઇન્ડિયા લીમીટેડ (NCDEX)
કરન્સી ટ્રેડીંગ :
કરન્સી ટ્રેડીંગ એટલે કે ઇન્ટરનેશનલ કરન્સીઓની લે - વેચ કરવી. મોટા ભાગે, બેંક અને ફાઈનાન્શિયલ ટ્રેડીંગ ઇન્સ્ટીટયુટસ કરન્સી ટ્રેડીંગ માં એક્ટીવ હોય છે. છતાં પણ નાના ઇન્વેસ્ટર પણ કરન્સીના એક્સચેન્જ રેટ માં આવતા ફેરફારમાંથી પોતાનો ફાયદો કરવા માટે કરન્સી ટ્રેડીંગ કરી શકે છે.
કરન્સી માર્કેટ :
ઇન્ટરનેશનલ કરન્સી માર્કેટ બૅન્કસ, કોમર્શીયલ કંપનીઝ, સેન્ટ્રલ બૅન્કસ, ઇન્વેસ્ટમેંટ મેનેજમેન્ટ ફંડ્સ, હૅજ ફંડ્સ, રીટેલ ફોરેકસ અને ઇન્વેસ્ટરથી બનેલું હોય છે.
ગ્લોબલી ફોરેકસ માર્કેટમાં વધુ ટ્રેડ થતી કરન્સી :
યુરો / યુએસ ડોલર (EUR/USD)
યુએસ ડોલર/ જૅપનીસ યેન (USD/JPY)
બ્રિટીશ પાઉન્ડ / યુએસ ડોલર (GBP/USD)
યુએસ ડોલર / સ્વીસ ફ્રાંક (USD/CHF)
કરન્સી ટ્રેડીંગના ફાયદા :
પોર્ટફોલિયો ડાઈવર્સિફીકેશન
હૅજિંગ (ખાસ કરીને ઈમ્પોર્ટર અને એકસપોર્ટર માટે)
ઓછું માર્જીન – વધારે લેવરેજ
લીમીટેડ સ્ક્રીપ્ટ્સ ને ટ્રેક કરવું સહેલું છે
માર્કેટના વિશેષ જાણકાર એવા ઇન્વેસ્ટર, આર્બીટ્રાજર્સ અને સ્પેકયુલેટર્સ માટે કરન્સી એક અલગ એસેટ ક્લાસ તરીકેરહે છે
મેનીપ્યુલેશન થવાની શક્યતા ખુબ જ ઓછી હોય છે
કરન્સી ડેરીવેટીવ્ઝ :
માર્કેટ શેરની દ્રષ્ટીએ જોઈએ તો કરન્સી માર્કેટ ઇન્ટરનેશનલ ઇક્વિટી માર્કેટ કરતા ખુબ મેચ્યોર અને મોટું છે. કરન્સી ડેરીવેટીવ એ બાયર અને સેલર વચ્ચેનો એવો કોંટ્રાક્ટ છે કે જેનું મૂલ્ય એક અથવા વધુ તેની સાથે જોડાયેલી અન્ય મિલકતો પર આધારિત હોય છે, એટલે કે કરન્સી વેલ્યુ ઉપર આધારિત હોય છે. કરન્સી એક્સચેન્જ રેટ ઉપર આધારિત ડેરીવેટીવ એગ્રીમેન્ટ એટલે, ભવિષ્યમાં અમુક કરન્સી પેર (દા. ત. EUR/USD) ની અમુક ક્વોન્ટીટી બીજી કરન્સી સાથે એક્સચેન્જ થઇ શકે એવો કરાર.
છેલ્લા કેટલાક વર્ષોમાં ઇન્ડીયન કરન્સી માર્કેટ માં એક્ટીવીટી ખુબ વધી છે અને તેની સાથે જ માર્કેટ પણ ખુબ વોલેટાઇલ રહ્યું છે. ઇન્ડીયન ફોરેકસ માર્કેટમાં જે ડેવલપમેન્ટ થઇ રહ્યા છે, તેના લીધે ઇન્વેસ્ટર અને ટ્રેડરો માટે ખુબ ઉજ્જવળ ચાન્સીસ છે.
કરન્સી ડેરીવેટીવ્ઝના ફ્યુચર અને ઓપ્શન કોંટ્રાક્ટ થઇ શકે છે, જે સ્ટોક ના ફ્યુચર અને ઓપ્શન કોંટ્રાક્ટ જેવા જ હોય છે. પણ આમાં એસેટ તરીકે સ્ટોક્સ ની જગ્યાએ કરન્સી પેર (USDINR, EURINR, JPYINR, GBPINR) હોય છે. કરન્સી ડેરિવેટિવ ૪ કરન્સી પેર માટે અવેલેબલ છે, US ડોલર (USD), યુરો (EUR), ગ્રેટ બ્રિટન પાઉન્ડ (GBP) અને જૅપનીસ યેન (JPY). કરન્સી ઓપ્શન્સ હમણાં ફક્ત US ડોલર માંજ અવેલેબલ છે.
કૉમોડિટી અને કરન્સી માર્કેટના પાર્ટીસિપંટ :
હૅજર: હૅજર્સ અનિશ્ચિતતા ને લીધે ઉભા થતા રિસ્કને ઓછું કરવાની ટ્રાય કરે છે. એસેટ માં થતા લોસ અથવા નફાને બેલેન્સ કરવા માટે હૅજર્સ ડેરીવેટીવ્ઝમાં ઓફસેટિંગ પોઝીશન લે છે.
સ્પેક્યુલેટર: સ્પેક્યુલેટર્સ રિસ્ક લેવા વાળા હોય છે અને તેમને વોલેટીલીટી પસંદ હોય છે. તેઓ એસેટના ભાવમાં થતી વધ ઘટમાંથી ફાયદો મેળવવા માટે માર્કેટની મૂવમેન્ટ સાથે અથવા તેની વિરુદ્ધમાં સોદો કરે છે.
કરન્સી અને જુદી જુદી કૉમોડિટીના ટ્રેડીંગ ને અસર કરનારા ફેક્ટર્સ :
કૉમોડિટી અને કરન્સી ટ્રેડીંગને અસર કરે એવા ઘણા ફેક્ટર છે. જીઓ-પોલીટીકલ મુદ્દા તો ખરાજ, સાથે US ઇકોનોમિક ડેટા (નોન-ફાર્મ પે રોલ ડેટા), ફેડરલ રીઝર્વ ઇન્ટરેસ્ટ રેટ, GDP ડેટા, નવા ઘરોનું વેચાણ/ બચેલા ઘરોનું વેચાણ, ક્રુડ ઓઈલ / નેચરલ ગેસનો સ્ટોક અને ઓઈલ રીગ કાઉન્ટ ડેટા પણ કૉમોડિટી અને કરન્સી માર્કેટને અસર કરે છે. ચાઈના ના GDP વગેરે ઇકોનોમિક ડેટા, એક્સપોર્ટ અને ઈમ્પોર્ટ પણ માર્કેટને અસર કરતા હોય છે.