Bonding with Bonds
Bonds or Debt Investment may still seem to be an uncommon investment option in the mind of many investors. The usual investment avenue of the majority has been equity, real estate, gold and mutual funds, but bonds are also an excellent investment option.
Bonds helps in diversifying your capital, it adds stability to the overall portfolio. Majority of bonds help getting regular income in the form of interest.
It is a great way to beat inflation as they protect principle and offer regular interest income.
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Above illustration clearly shows that savings in Bank’s Saving A/c is nothing less than destruction of wealth, one needs to invest in right avenues.
Fixed Income Investments : A Brief
One thing that comes to our mind on hearing fixed income investments is Bank Fixed Deposits, but there is much to it such as bonds, company deposits, debentures, etc.
Fixed Income investment is important in one’s portfolio as it helps to maintain stability and also helps earning consistent flows. Investors usually have prefered bank fixed deposits and equity for investments. Although, fixed deposits do provide stability and regular interest, one can choose from other options for additional returns over bank deposits.
Many corporates, public and private issue bonds and deposits, for raise funds, which are used for their expansion or operational needs.
These have varied fundamental features such as secured or unsecured, different interest frequency, maturity and embedded features, which are well mentioned in the bond factsheet.
Let us understand a few of the popular options:
- Tax Free Bonds: Usually issued by PSUs that offer tax free interest income, i.e. the interest earned on the investment of these bonds is tax free.
- Bonds/Debentures/Deposits: A broader category that is issued by both Private and PSU companies, which offer fixed interest income either monthly, quarterly or annually.
- Cumulative Deposits: These are issued by both Public and Private companies but give interest alongwith principle at the time of maturity.
- Zero-Coupon Bonds: These are also known as deep discount bonds, they are issued at deep discount to the face value of the bond, which on maturing gives the investor the face value.
However, the bond investments too carry some risks:
- Default Risk: A company may default from paying the bondholders if its financial health detoriates.
- Liquidity Risk: Exiting from corporate deposits/bonds may be difficult if not listed. However, even if listed, some of the bonds may find less volumes on the exchange.
- Interest Rate Risk: Interest rate risk can be explained in two ways: reinvestment risk and price risk.
Reinvestment risk: Investor faces risk of investing the proceeds from the investment at lower rate than the existing rate of interest.
Price risk: Bond yields and prices are inversely related, thus in rising interest rate scenario, the price of existing investment reduces. Thus, if the investor wishes to exit before maturity, he may receive less value than invested.
बॉन्डिंग विथ बांड्स
आज भी काफी निवेशकों द्वारा बांड्स और डेट में निवेश करना एक सामान्य विकल्प नही माना जाता है। एक सामान्य निवेश के तौर पर अधिकतर इक्विटी, रियल एस्टेट, गोल्ड और म्यूच्यूअल फंड्स को ही अच्छा निवेश माना जाता है लेकिन बांड्स में निवेश करना भी एक बेहतरीन विकल्प है।
बांड्स आपकी पूंजी को डिवर्सिफाय करने में मदद करता है और साथ ही पोर्टफोलियो को भी स्थिरता देता है। अधिकतम बांड्स ब्याज के रूप में नियमित आय देने में मदद करते है।
यह महँगाई से पार पाने का सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि यह निवेश राशि और उससे होने वाली ब्याज के रूप में नियमित आय दोनों को सुरक्षित करता है।
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निश्चित आय निवेश : संक्षेप में
निश्चित आय निवेश के बारे में जो पहली चीज़ दिमाग में आती है, वह है फिक्स्ड डिपॉजिट्स है मगर इस निवेश में बांड्स, कंपनी डिपॉजिट्स, डिबेंचर्स जैसे कई विकल्प मौजूद है।
निश्चित आय निवेश आपके पोर्टफोलियो के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्थिरता और नियमित आय देने में मदद करता है। निवेशक आम तौर पर बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट्स और इक्विटी में निवेश करना पसन्द करते है। यद्यपि फिक्स्ड डिपॉजिट्स भी स्थिरता और नियमित आय देते है फिर भी और ज्यादा रिटर्न पाने के लिए बैंक डिपॉजिट्स के अलावा यह एक बेहतरीन विकल्प है।
बहुत सी प्राइवेट और पब्लिक कंपनियाँ अपने फंड्स बढ़ाने के लिए बांड्स और डिपॉजिट्स वितरित करती है जो कि कंपनियों को अपना दायरा बढ़ाने और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में मदद करती है।
इनकी कई मूलभूत विशेषताएँ है जैसे सुरक्षा या असुरक्षा, अलग- अलग ब्याज दर, मैच्यूरिटी और अंदरूनी विशेषताएँ जो कि बॉण्ड फॅक्टशीट में लिखी होती है।
आइये, कुछ मुख्य विकल्पों को समझने की कोशिश करे :
- टैक्स फी बांड्स: ये सामान्य तौर पर पी. अस. यू. द्वारा वितरित किये जाते है जो टैक्स फ्री ब्याज के रूप में आय देते है यानि इन बांड्स में निवेश करने पर ब्याज के रूप में होने वाली आय टैक्स फ्री होती है।
- बांड्स/ डिबेंचर्स/ डिपॉजिट्स: प्राइवेट और पी. एस. यू. कंपनियां इस केटेगरी के बांड्स वितरित करती है जो कि मासिक, त्रेमासिक या वार्षिक ब्याज के रूप में आय देती है।
- क्युमुलेटिव डिपॉइट्स: ये पब्लिक और प्राइवेट दोनो ही कंपनियों द्वारा वितरित किये जाते है लेकिन निवेश की राशि और उस पर ब्याज मैच्यूरिटी पर ही मिलता है।
- जीरो- कूपन बांड्स: इन बांड्स को डीप डिस्काउंट बांड्स भी कहा जाता है, ये बॉण्ड के मूल्य पर बहुत ज्यादा छूट देकर वितरित किये जाते है जो कि मेच्योर होने पर बांड का अंकित मूल्य ही निवेशक को मिल जाता है।
यद्यपि बांड्स में निवेश करने के कुछ खतरे भी है :
- डिफ़ॉल्ट रिस्क: अगर कंपनी की वित्तीय हालात बिगड़ती है तो कंपनी अपने बॉंड-होल्डर को पैसा चुकाने में असमर्थ हो सकती है।
- लिक्विडिटी रिस्क: यदि कुछ कॉर्पोरेट डेपोसिट/ या बांड्स लिस्टेड नही है तो उनमें से बाहर निकलना मुश्किल हो सकता है और यदि वे लिस्टेड भी हो तब भी एक्सचेंज में उनकी संख्या कम हो सकती है।
- इंटरेस्ट रेट रिस्क: इंटरेस्ट रेट रिस्क को दो तरीको से समझाया जा सकता है :
रि-इंवेस्टमेंट रिस्क: निवेशक को अपने पुराने निवेश से मिली राशि को वर्तमान दर से कम दर पर दोबारा निवेश करना पड़ सकता है।
प्राइज रिस्क: बॉन्ड से होने वाला मुनाफा और और उसकी कीमत में विपरीत संबंध होता है, बढ़ती हुई ब्याज दर के इस माहौल में वर्तमान निवेश का मूल्य घट रहा है। इसलिए यदि कोई निवेशक मैच्यूरिटी के पहले ही निवेश से बाहर निकलना चाहता है तो उसे निवेश की गई राशि से कम मूल्य मिलता है।
बॉण्ड्स बरोबर `बॉण्डिंग`
बॉण्ड्स भारतात इन्व्हेस्टमेंट म्हणून जास्त प्रसिद्ध नाहीत; जास्त करून इक्विटी, सोनं, म्युच्युअल फंडस् आणि रिअल इस्टेट खूप प्रसिद्ध आहेत, पण बॉण्ड्स देखील इन्व्हेस्टमेंट म्हणून चांगले ऑप्शन आहे.
बॉण्ड्स तुमच्या संपूर्ण इन्व्हेस्टमेंटमधे विविधिता आणू शकतात ज्याने रिस्क कमी होऊ शकते. बॉण्ड्स तुम्हला रेग्युलरली व्याज पेमेंट करतात, डिविडेंड सारखे पण एक सारखे.
बॉण्ड्स `इन्फ्लेशन` किंवा महागाई वर कंट्रोल आणू शकते कारण तुम्हाला त्यातून रेगुलर पैसे मिळतात.
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वरील चार्टमधून आपण बघू शकतो कि बँकचे सेविंग्स खात्या मधे आपले पैसे जास्त वाढत नाही.
फिक्स्ड इनकम इन्वेस्ट्मेन्ट्स
फिक्स्ड इनकम इन्वेस्ट्मेन्ट्स ऐकून पहिली गोषट, फिक्स्ड डेपोषित अकॉउंट डोक्यात येते, पण फिक्स्ड इनकम इन्वेस्ट्मेन्ट्स यापेक्षा जास्त आहे जसे बॉण्ड्स, कंपनी डेपोसिट, डिबेंचरस इत्यादी. फिक्स्ड इनकम इन्वेस्ट्मेन्ट्स आपल्या पोर्टफोलिओ मध्ये गरजेचे आहेत कारण ते तुमचा इन्वेस्ट्मेन्ट्समधे स्थिरता आणतात आणि इंटरेस्ट पेमेंट देखील देतात. गुंतवणूकदारांनी नेहमी बँक फिक्स्ड डेपोसिट आणि इक्विटी इनव्हेसमेंटकडे पहिले आहे.बँक फिक्स्ड डेपोसिटमधून स्तिरता आणि चांगला व्याजदर मिळतो, पण दुसऱ्या इन्व्हेस्टमेंटकडे हि बघितले पाहिजे,ज्यातून फिक्स्ड डेपोसिटपेक्षा जास्त रिटर्न्स मिळू शकेल.
भरपूर कंपन्या, पब्लिक आणि प्रायव्हेट, बॉण्ड्स शेयर्स सारखे ऑफर करतात.
बॉण्ड्स भरपूर फीचर्सचे असू शकतात, जसे त्यांची मॅच्युरिटी, व्याजदर आणि त्यात असेलेले ऑपशन्स वेगवेगळे असू शकतात, जे बॉण्ड्स घेण्या अगोदर बॉण्ड फॅक्टशीटमधे दिलेले असतात.
बॉण्ड्समधील असेलेल्या अनेक ऑपशन्सची माहिती.
- टॅक्स फ्री बॉण्ड्स: हे बॉण्ड्स जास्त करून PSU (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग) जारी करतात. यात मिळणारा व्याज टॅक्स फ्री असतो.
- बॉण्ड्स/ डिबेंचर्स/ डेपोसिटस: हे पब्लिक, प्रायवेट आणि PSU कंपन्या इशू करतात, यात व्याज प्रति महिन्यात, तिमाहीत किंवा वर्षातून एकदा मिळतो.
- क्युमुलोटिव्ह डेपोसिट: हे पब्लिक आणि प्रायवेट कंपन्या इशू करतात, यात व्याज बरोबर कॅपिटल हाहि थोडे थोडे करून परत मिळतात.
- झिरो कूपन बॉण्ड: या बॉण्ड चा किंमतवर आपल्याला `डिस्काउंट` मिळतो आणि मॅच्युरिटीला आपल्याला बॉण्डची असलेली संपूर्ण किंमत परत मिळते, हा डिस्काउंट आपल्यासाठी व्याज बनतो.
बॉण्ड्स जरीही चांगले इन्व्हेस्टमेंट असले, तरी यात रिस्क तर नक्कीच आहे. बॉण्ड्स मधील रिस्कची माहिती:
- डिफॉल्ट रिस्क: बॉण्ड्स इशू करणाऱ्या कंपन्या कर्जबाजारी होऊ शकतात ज्याचा अर्थ तुमचे व्याज व इन्व्हेस्टमेंट बुडू शकते.
- लिक्विडीटी रिस्क: पैशाची अर्जंट गरज असताना जर तुम्ही आपले बॉण्ड्स विकू शकला नाही याला लिक्विडीटी रिस्क म्हणतात. बॉण्ड्स जर प्रायवेट किंवा अज्ञात कंपनीचे असतील तर त्यांना विकणे कठीण ठरते.
- इंटरेस्ट रेट रिस्क: इंटरेस्ट रेट रिस्क दोन पद्धतीत समजावू शकतो: रीइन्व्हेस्टमेंट रिस्क आणि प्राईस रिस्क.
रीइन्व्हेस्टमेंट रिस्क: बॉण्डमधून परत आलेले पैसे आधीपेक्षा कमी दरावर इन्व्हेस्ट करणे याला रीइन्व्हेस्टमेंट रिस्क असे म्हणतात.
प्राईस रिस्क: बॉण्ड्स मधून मिळणारा व्याजदर आणि त्याची किमती मधे उलट नाते आहेत. याचा अर्थ, जर मार्केटमधे व्याजदर वाढला तर बॉण्डची किंमत पडते, जर व्याज दर कमी झाले तर बॉण्डची किंमत वाढते.
બૉન્ડ સાથે નો આપણો બૉન્ડ
ઘણા બધા ઇન્વેસ્ટર્સ માટે બૉન્ડ અને ડૅટ હજી પણ એક અનકૉમન ઇન્વેસ્ટમેન્ટ ઑપશન છે. લગભગ બધાં જ લોકો ઇકવીટી, રીયલ ઍસ્ટેટ, સોનું અને મ્યુચ્યુઅલ ફંડમાં ઇન્વેસ્ટ કરતાં હોય છે. પણ ભૂલવું નહીં કે બૉન્ડ અને ડૅટ પણ બહુ સરસ ઇન્વેસ્ટમેન્ટ ઑપશન છે.
બૉન્ડ પોર્ટફોલિયો નું રિસ્ક ઘટાડવા, સ્ટેબિલિટી આપવા ડાઇવર્સીફિકેશન માં મદદ કરે છે. મોટા ભાગના બૉન્ડ વ્યાજ આપીને રેગ્યુલર ઈનકમ પૂરી પાડે છે. ઈન્ફ્લેશનથી બચવાનો અને કેપિટલ બચાવવાનો આ ખૂબ સારો રસ્તો છે.
ઉપરના ટૅબલમાં દેખાય છે કે સેવીંગ બઁક એકાઉન્ટ તમારી કેપિટલ બનાવતું નથી, પણ તોડે છે. માટે આપણે સમજદારીપૂર્વક, સાચી જગ્યાએ ઇન્વેસ્ટ કરવું જોઈએ.
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ફિક્સ્ડ ઇનકમ ઇન્વેસ્ટમેન્ટ વિશે કંઈક માહિતી:
ફિક્સ્ડ ઇનકમ ઇન્વેસ્ટમેન્ટ સાંભળતા કદાચ સૌથી પહેલા આપણા મનમાં બઁક ફિક્સ્ડ ના ડિપોઝિટ આવી જાય પણ તેનાથી ઘણું વિશેષ પણ ઉપલબ્ધ છે: બૉન્ડ, ડિબૅન્ચર, કંપની ડિપોઝિટ, વગેરે.
પોર્ટફોલિયોની સ્ટેબિલિટી અને રેગ્યુલર ઇનકમ માટે ફિક્સ્ડ ઇનકમ સિક્યોરિટી ઘણી જરૂરી છે. ઇન્વેસ્ટર્સના પ્રેફરન્સ હંમેશા બઁક ડિપોઝિટ અથવા ઈક્વિટી રહ્યા છે; બઁક ડિપોઝિટ સ્ટેબિલિટી અને રેગ્યુલર ઇન્ટરેસ્ટ પણ આપે છે, પણ વધુ રિસર્ચ રિટર્ન માટે તમારે અન્ય ઑપશન પણ જોવા જોઈએ.
ઘણા કોર્પોરેટ, પબ્લિક અને પ્રાઈવેટ ઓર્ગેનાઇઝેશન પોતાના ફંડિંગની જરૂર પૂરી કરવા બૉન્ડ અથવા ડિપોઝિટ બનાવે છે. આ ફંડ તેમના ઓપરેશન અથવા એક્સ્પાનશન ના કામોમાં વપરાય છે. આ સ્કીમના ફીચર અલગ-અલગ હોય, જેમ કે સિક્યોર્ડ કે અન-સિક્યોર્ડ, વિવિધ ઈન્ટરેસ્ટ ફ્રિકવંસી અને મેચ્યોરિટી પિરિયડ. આ બધી જ જાણકારી બૉન્ડ ફેક્ટશીટમાં લખેલી હોય છે.
ચાલો, થોડા લોકપ્રિય ઓપ્શન્સને જાણીએ:
- ટેક્સફ્રી બૉન્ડ: આવી સિક્યોરિટી લગભગ PSU અર્થાત્ પબ્લિક સેક્ટર અન્ડરટેકિંગ કંપનીઓ બહાર પાડે છે આ બોન્ડ પર મળેલું રીટર્ન (એટલે કે ઇન્ટરેસ્ટ) ટેક્સફ્રી હોય છે.
- બૉન્ડ, ડિબૅન્ચર, ડિપોઝિટ: આ એક ઘણી મોટી કેટેગરી છે જે બંને પબ્લિક અને પ્રાઈવેટ કંપનીઓ સાથે જોડાયેલી છે. આમાંથી મળતું ઇન્ટરેસ્ટ માસિક, ક્વૉર્ટરલી અથવા એન્યુઅલ હોઈ શકે.
- ક્યુમ્યુલેટીવ ડિપોઝિટ: પબ્લિક અને પ્રાઈવેટ કંપનીઓ બંને આવી સિકયોરિટી રજુ કરે છે. આની વિશેષતા છે કે તમને ઇન્ટરેસ્ટ અને કેપિટલ બંને એકસાથે મેચ્યોરિટી પર મળે છે.
- ઝીરો કૂપન બૉન્ડ: આનું બીજું નામ ડીપ ડિસકાઉન્ટ બૉન્ડ છે. તે પોતાની ફેસ વૅલ્યુ કરતા ઘણા ઓછા ભાવે પહેલા વેચવામાં આવે છે અને મેચ્યોરિટી વખતે ફેસ વૅલ્યુ પર તમારી પાસેથી ફરી પાછા ખરીદવામાં આવે છે.
પણ બૉન્ડ ઈન્વેસ્ટમેન્ટમાં થોડા રિસ્ક પણ છે:
- ડિફોલ્ટ રિસ્ક: / જો કંપનીની ફાયનાન્શીયલ કન્ડિશન બગડી, તો તે પોતાના બૉન્ડહોલ્ડર્સને વ્યાજ અથવા કેપિટલ પાછા આપી શકતી નથી.
- લિકવીડિટી રિસ્ક: જો તમારી પાસે રહેલા કોર્પોરેટ બૉન્ડ અનલિસ્ટેડ છે, તો તે વહેંચવા ઘણા મુશ્કેલ થઈ જાય છે. Listed હોવા છતાં પણ સ્ટોક એક્સ્ચેન્જ પર બોન્ડ્સનો વૉલ્યુમ ઘણો વધારે હોતો નથી.
- ઇન્ટરેસ્ટ રેટ રિસ્ક: ઇન્ટરેસ્ટ રેટ રિસ્કના બે ભાગ છે:
રિ-ઇન્વેસ્ટમેન્ટ રિસ્ક: તમારા બોન્ડ્સમાંથી આવતું રીટર્ન જો તમે માર્કેટમાં સારા દરે ઈન્વેસ્ટ કરી શક્યા, તો તે મોટું જોખમ થઇ બેસે છે.
પ્રાઇસ રિસ્ક: બોન્ડ્સમાંથી આવતુ રીટર્ન અને બજારનું ઇન્ટરેસ્ટ રેટ બંને ઇન્વરસલી રિલેટેડ છે. માટે, જો બજારનું ઇન્ટરેસ્ટ રેટ વધી જાય અને બૉન્ડ કરતા વધુ રીટર્ન આપવા લાગે, તો બૉન્ડનાં ભાવો સામાન્ય રીતે પડી જાય. આવા સમયે તમારે બૉન્ડ વહેંચવા પડે તો તમને યોગ્ય ભાવ મળવો અઘરો છે.